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आत्मकथा . .
(२३) विविध आन्दोलन
इन्दोर में विजातीय-विवाह का आंदोलन ही गनीमत था पर वम्बई में इतना भय नहीं था-साथ ही 'जैन-जगत' पत्र हाथ में था इसलिये प्रबल आंदोलक बन गया । सुधार के विरोध में जो भी आये उन सब ऊपर टूट पड़ता । लेखनी द्वारा आक्रमण करने में दया-मायाका कुछ काम न था । हाँ, सभ्यताका खयाल रखता था। . .स्थितिपालक दल की नीति समाज को भड़काने की रहती थी । विजातीय-विवाह से समाज नहीं भड़कती तो विधवा-विवाह से सही-इसी नाम से समाज को भड़काने लगते । कुछ दिन तक मुझे रजस्वला स्त्री को मंदिर में ले जानेवाला कहा गया । ऐसी बातों का यह परिणाम होता था कि उनपर भी मैं लम्बे लम्बे शास्त्रीय विवेचनापूर्ण लेख या लेखमालाएँ लिख मारता था। : एक दिन सुधारक कहलाना भी कुछ निंदाजनक समझा जाता था पर विजातीय विवाह आन्दोलन की सफलता से तथा जैनजगत् के आन्दोलनों से वह वात न रही । सुधारक और स्थितिपालक दल वरावरी पर आगये इसलिये यह सोचा गया कि किसी तरह दोनों दलों में सुलह करली जाय । इसलिये सेठ हुकुमचन्दजी के यहां इन्दोर में एक सुलह मीटिंग की योजना की गई: 1.सुधारक. लोग इसके लिये बहुत कुछ झुकने को तैयार थे पर इतने पर भी स्थितिपालक पंडित लोग राजी न हुए | उन्हें कुछ लोगों के; खास कर मेरा, नाम महासभा में शामिल करने में बड़ी आपत्ति थी।