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आत्मकथा अपने हाथ से देखेंगे. जनता के दलालों के हाथों नहीं। . . : , यही थी मेरी नीति, इसी नीति पर मैं चला, चल रहा हूं . कदाचित् भविष्यमें गी चलूंगा। यह तो सुधार आन्दोलनके सौभाग्य की बात थी कि इन्दोर की सुलह मीटिंग असफल रही समझौता न हुआ। अगर सफल हुआ होता तो सुधार आन्दोलन के कुछ वर्ष ‘खासकर मेरे जीवन के कुछ वर्ष सुधार की दृष्टि से व्यर्थ गये होते। ... मेरे खयाल से समझौता लेन देन की चीज है परन्तु जहां सत्यासत्य. का निर्णय करना है रोगी की चिकित्सा करना है वहां सत्य ही सब से अधिक प्रबल है । .... . .:आन्दोलन जोर से चल रहा था स्थितिपालक दल टिक नहीं रहा था इसका मुख्य कारण यह था कि उनने श्रीगणेश वुग किया था । विजातीय विवाह आन्दोलन का विरोध किया उनने जैन शास्त्रों के आधार से, पर विजातीय विवाह के समर्थन का साहित्य जैन शास्त्रों में जितना भरा पड़ा है उतना शायद ही कहीं हो । वात यह है कि म. महावीर ने जैन धर्म की स्थापना जिन जिन । बातों के लिये की थी उनमें जाति पांति के वन्धन तोड़ना भी मुख्य था। इसलिये जैन शास्त्रों में असवर्ण विवाह आर्यम्लेच्छ विवाहों के उदाहरण भरे पड़े हैं | अब उनका विरोध शास्त्र के आधारसे करना समाज की आंखों में धूल झोंकना था। .. सामाजिक दृष्टि से अगर विरोध किया होता तो भी स्थितिपालकों को सफलता नं मिलती, क्योंकि कई. अल्पसंख्यक जातियों को इसकी बहुत जरूरत थी, फिर भी इतनी असफलता न मिलती । सामाजिक दृष्टि से तो दोनों पक्ष में कुछ न कुछ कहने की