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आत्मकथा वहां महादुःख है, स्वाभिमान वेचना पड़ता है । जिसका फल यह होता है कि कोई कितना ही बुद्धिमान क्यों न हो वह अपने वचन का असर किसी दूसरी आत्मा पर नहीं डाल सकता ।
विद्वान होकर भी जो मनुष्य स्वतन्त्रवृत्ति नहीं है उसको थोड़ा नहीं बहुत दवना पड़ता है ।..."पिंजड़े में फंसा हुआ शेर. जैसे दुःखी होता है वही दशा उस वेचारे पंडित की होती है । इसालिये मुझ सरीखे स्वाभिमानी मनुष्य को स्वतंत्र-वत्ति होना योग्य है, क्योंकि ऐसा न होने से कुत्ते भी मुझे धमकियाँ दिखलाते हैं और मुझे दूसरों के मुँह की तरफ झूकना पड़ता है । यदि सहसा अधिक कुछ नहीं हो सकता तो कम से कम ऐसी प्रतिज्ञा अवश्य ले लेना चाहिये कि उन्मत्त धनियों की संगति कभी न करूँ। क्योंकि इन लोगों के द्वारा किया गया अपमान इतना गहरा होता है कि चोट दिखती नहीं पर तन सूख जाता है........।
सिवनी ६ मार्च १९२० जिस समय मैं बनारस से चला था उससमय मुझे ज्ञात होता था कि बनारस खट्टा है और सिवनी तो मिश्री की डली है। परन्तु . हाय रे । मनुष्य का हृदय, तू उसी सिवनी को खट्टी
कह रहा है। और वनारस का चितवन करके तन्मय हुआ जाता : है। यह एक तेरी चंचलता का नमूना है। इससे यह बात स्पष्ट . है कि संसार में कोई वस्तु न अच्छी है न वरी है। अच्छा या
बुरा है मनुष्य का हृदय । जैसी. वह कल्पना करता है वैसा ही