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डायरी के कुछ पृष्ठ [ १६.५ हूँ किन्तु अब समझा जो कर्तव्य-शील होते हैं उनके काम कितने . ही क्यों न हो सब को समय मिल जाता है । ......
बनारस १७ जनवरी १९२० - मनुष्य कभी किसी को अच्छा कभी किसी को बुरा समझने लगता है। यह आत्मस्वभाव न होने पर भी स्वभाव-सा हो रहा है । जा मनुष्य हमको बुरा मालूम पड़ता है यदि उससे हमारा कोई स्वार्थसिद्ध हो जाता है तो वही अच्छा लगने लगता है । स्वार्थ की महिमा अनुपम है । .
बनारस १९ जनवरी १९२० ___ मेरा चिंत्त गम्भीर नहीं है, बाहर दिखलाने को चाहे भले ही रहे, किन्तु भीतर पोल ही पोल है । प्रफुल्लित चित्त भी थोड़ी सी बात का निमित्त पाकर अग्नि बन जाता है । यह हृदय की नीचता नहीं तो क्या है ?
शाहपुर ७ फरवरी १९२.. अरसिक होकर के क्यों, वथा भ्रमर को कलङ्क देते हो। सरस सुमन यदि होगा, तो रस ग्राहक अवश्य आयेंगे ।
अकलतरा २७ फरवरी १९२० मनुष्य कैसा ही क्यों न हो जबतक उसके पास धन न हो । तबतक वह इस काल की अपेक्षा बलवान नहीं कहला सकता । धन के बिना विद्वान मुर्ख है, निरोगी रोगी है और गुणी दोषी है । धन न रख कर संसार में अपनी आवश्यकता पूर्ण करना कठिन है, इसके लिये पराधीन होना पड़ता है और जहां पराधीनता. है