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डायरी के कुछ पृष्ठ
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घर से हटकर जंगल में
जावे पर ये विचार न जावें अकेले बैठना, दुनिया के झगड़ों से बचे रहना जितना सुखकर है उतना धन आदि कोई सामग्री नहीं है । किन्तु इस समय भी मेरे विचार सकलंक हैं क्योंकि उनके भीतर भी यश की इच्छा घुसी है । यद्यपि यह काम यश के लिये नहीं है तथापि हृदयमें यश की वासना बनी हुई है यही हृदय का कलंक है और इसका छूटना कठिन है । देखें कब इसमें कृतकार्य हो पाता हूँ ।
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बनारस २७ नवम्बर १९१९
कभी कभी ऐसी वीतरागता आ जाती है कि ऐसा लगता है कि इस देह से शीघ्र पिंड छूटे और ऐसी जगह जन्मूँ जहाँ मुझे उत्तमोत्तम मुनियों का सम्बन्ध मिले जैसे विदेह । अब मुझे अपना ही शरीर भारी मालूम होने लगा है । मुझे नहीं मालूम 'मेरी जीवन नौका किधर जायगी ?
बनारस २ जनवरी १९२०
यदि हमने यश भी प्राप्त कर लिया तो भी इससे आत्मा का सुधार क्या हुआ ? यह केवल वासना ही है । इसे संकल्परूप परिणित कर लूं तो भी कुछ कल्याण नहीं है ।
बनारस ३ जनवरी १९२०
मनुष्य कितना ही छोटा पर्यो न हो यदि वह दृढ़ संकल्प करले तो संसार को बता सकता है कि छोटा मनुष्य भी कितना समुन्नत हो सकता है ? यदि मनुष्य को गिरानेवाली कोई वस्तु है तो अनुत्साह है अथवा आत्मशक्ति का अज्ञान मनुष्य