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डायरी के कुछ पृष्ठ [१६१
दमोह २४ मई १९१९ आज मुझे इस बात का अनुभव हुआ है कि वास्तव में जिंतना सुख है वह सब स्वाधीन ही है। कोई कहे कि स्त्री-पुत्रादिकों से सुख मिल सकता है सो यह सब झूठ है । जैसे स्वार्थी हम हैं उसी तरह सारा संसार है । किसी जीव पर किसी जीव का आधिकार नहीं है । जिस मनुष्य को आज अच्छा समझते हो उसीको कल बुरा समझना पड़ता है और जिसको आज बुरा . समझते हो उसीको कल अच्छा समझना पड़ता है, इससे ज्ञात होता है कि संसार के. प्राणी न अच्छे हैं न बुरे । वे जैसे हैं सो हैं, अच्छा बुरा कहना हमारा भ्रम है इससे मुझे चाहिये कि अपने परिणाम न बिगाई और दुनिया के रंगढंग देखता हुआ चलूँ।
____ दमोह २५ मई .१९१९ ..
मनुष्य को जितनी सुख की सामग्री मिलती है वह उतना ही दुःखी होता जाता है । आज जिसके. लिये मर रहा है कल उसीके मिलने से वह नीरस प्रतीत होने लगती है । इसके साथ इतना कष्ट अवश्य है कि यदि प्राप्त वस्तु का वियोग हो जावे तो भारी दुःख का अनुभव करना पड़ता है।
बनारस २ जुलाई १९१९ मैं जहां तक विचारता हूं वहां तक मुझ यही पता पड़ता है कि मनुष्य को संतोष के समान और कुछ सुख नहीं है । यद्यपि इस बात को में बहुत दिन.से. शास्त्रों में सुनता चला आता हूं लेकिन विशेषतः इसका अनुभव मुझे आज ही हो रहा है। कोई