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आत्मकथा घटनाएं लिखीं नहीं गई, न याद आ रही है।
वनारस ३ अप्रेल १९१९ आज हृदय में बड़ा दुःख रहा । ३३ करोड़ भारतवासी क्या · कुछ नहीं कर सकते ? हमारी छाती पर दनादन गोलियां चलाई
जाँय और उस पर भी अत्याचार होते रहें ! नहीं मालूम अब क्या होने वाला है ! लेकिन भारत का यह खून भारत की स्वतन्त्रता का तिलक है । जिसका अभ्युत्थान होना होता है उसकी पूर्व पहिचान यही है.......हमारे प्यारे देशभाइयों का जो खून हुआ हे वही खून भारत से विदेशियों का मुंह काला करेगा।
दमोह १२ मई ·९१९ भारत कितना समुन्नत था जिसको देखकर स्वर्ग के देवता भी सिर झुकाते थे, परन्तु आज उसकी सन्तान निःशस्त्रहस्त हो रही है और देश विदेशों में ठोकरें खाती फिरती है । महात्मा गांधी सरीखे दो चार आदमी अवश्य हैं जो देश के लिये कुछ करते हैं, पर हम सरीखे मूर्ख तो देखो, जिनने दो रोटियों के लिये जीवन बेच दिया है । वि.कार है ! मेरे इस जीवन को । जैसा पाया जैसा न पाया।
दमोह २३ मई १९१९ । मनुष्य को मानसिक वाचनिक बल के साथ शारीरिक बल भी बहुत उपार्जित करना चाहिये । यद्यपि यह मत्य है कि मानसिक वल के आगे शारीरिक बल किसी काम का नहीं तथापि शारीरिक वल से मानसिक बल में बड़ी सहायता मिलती है।