________________
पाठशाला का ज्ञानदान
[ ५१
किन्नर किम्पुरुष महारोग गंधर्व यक्ष राक्षस, भूत पिशाच में से कौन . है ? उसकी उम्र क्या है उसने विदेहों में क्या देखा ? नंदीवर 'में. क्या देखा ? अगर इन प्रश्नों का ठीक उत्तर ( जैन शास्त्रों के
.
अनुसार ) दे देगा तो मैं सच्चा भूत मानूँगा । नहीं तो झूठा है यह साफ़ बात है ।
मैं अन्य सब विषयों में साधारण था पर धर्मशास्त्र में सत्र से प्रथम रहता था । ऊँची कक्षा के विद्यार्थी भी धर्मशास्त्र के जनरल ज्ञान के लियें मेरा नाम लेते थे ।
•
•
पर तीन चार साल पढ़ने पर भी मैं कुछ नहीं पढ़ पाया। लघुकौमुदी भी पूरी न हुई । कलकत्ते की प्रथमा भी नहीं दे पाया । शायद व्याकरण तो मैं जीवन भर भी पूरा न कर पाता । इस विषय में मैंने अपने को मूढ़ मान लिया था !
तत्र मुझे काव्य पढ़ने में लगाया गया। अध्यापक महोदय, काव्य
.
T
के प्रकांड पंडित थे पर मुझसे तो किरातार्जुनीय की मल्लिनाथी: टीका घुटवाते थे । मेरा कहना था कि मल्लिनाथी टीका में जो जो बातें हैं वें, सब सब मैं आपको अपने क्रम से सुना देता हूं। श्लोक की पूरी व्याख्या कर देता हूं पर रट कर उसी क्रम से सुनाऊँ यह मुझसे न होगा । अध्यापक जी को इस बात से सन्तोष न था । पर वे मुझसे प्रेम बहुत करते थे इसलिये उनके अनुरोध से जैसे तैसे टीका याद किया
•
1
4
करता था ।
::
इस समय तक धर्मशास्त्र में प्रवेशिका परीक्षा में पास, कर गया था। मेरी तीव्र इच्छा थी कि किसी तरह सवार्थसिद्धि
५