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आत्म-कथा काय काली मूर्ति के आगे शाम को ध्यान लगाने की आदत थी उससे बड़ी शान्ति मिलती थी । पलक बन्द किये बिना इकटक अधिक से अधिक देर तक मूर्ति के आगे देखता रहता और इकटक देखते रहने से आँखों के आगे अंधेरा छा जाय तब समझता था कि इस इस अंधेरे के बाद अवश्य किसी दिन कोई दिव्यदर्शन होगा पर जव बहुत दिन तक कोई दिव्य दर्शन न हुआ, अंधेरे तक ही दौड़ रही तव अपने को निर्वल या अभागी समझ कर वह प्रयत्न छोड़ दिया । आज तो उस अवस्था को मूढ़ता ही समझता हूँ जो धार्मिक अन्धश्रद्धा के कारण आगई थी और जो न्यायतीर्थ होने पर भी नहीं छूटी थी। ..
सिवनी में कोई आर्थिक असन्तोष नहीं था फिर भी सिवनी में मन न लगा क्योंकि बनारस में सर्वार्थसिद्धि गोम्मटसार आदि पढ़ाता था जब कि सिवनी में सबसे ऊंची कक्षा सागार-धर्मामृत की थी, सब छोटे छोटे विद्यार्थी थे । बनारस में जो सन्मान था वह यहाँ नहीं था । साथ ही विधवा-विवाह को लेकर जो चर्चा चली थी उसका अन्त अच्छा न आया इसलिये भी दिल कुछ खट्टा हो गया था. । नम्रता और विनय से ही क्यों न रोका गया हो पर रोका गया इससे अभिमान को धक्का लगचुका था । स्वेच्छा से रुकगया होता तो कोई बात नहीं थी।
इसलिये सिवनी छोड़ने के विचार में ही था कि सिवनी में प्लेग की बीमारी आगई । इसलिये दो माह की छुट्टी लेकर सिवनी छोड़ दी। . .