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इन्दोर में
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बन गया जो कि परवार सभा का मुख पत्र था । आशा थी कि अब मैं कुछ कर सकूंगा पर सभा के मंत्रीजी समाज के अनुसार ही चलना चाहते थे एक तरह से वे सुधार के विरोधी थे । मैंने सोचा अगर सभा के मंत्रीजी बदल जायँ तो शायद सुधार करने में सुभीता हो । बड़ी मुश्किल से नागपुर अधिवेशन में हम लोग इस प्रयत्न में सफल हुए । मंत्रीजी बदल गये । पर कुछ ही दिन बाद मालूम हो गया कि नागनाथ साँपनाथ में कोई अन्तर नहीं है। छोटी छोटी तुच्छ सुविधाओं के लिये सिरफोड़ो करना और समझना कि हमने बड़ी बहादुरी की है हम बड़े सुधारक हैं इसके सिवाय कोई सुधार नहीं हो सका । साधारण सुविधाएँ तो लोग यों ही लेलेते हैं उनके लिये सभा बनाने की या तूल देने की जरूरत नहीं है । बाल्यावस्था में ऐसे विवाहों में गया हूं जिन में आठ आठ पगतें होती थीं और मेरे ही देखते देखते परवार - सभा और परवार बन्धु के बिना ही आठ क बदले दो पंग रह गईं। बीसों विवाह आठ सांक के बदले चार सांक में हो गये। चार सांक का अब कोई विरोध नहीं है फिर भी परवार - सभा चार सांक का प्रस्ताव पास नहीं कर सकी । इस प्रकार जिन बातों को समाज अपना लेती है उनके प्रस्ताव की जरूरत नहीं रहती और जिनको समाज नहीं
अपनाती वे संगठननाशक कहलाते हैं इसलिये नहीं लाये जाते इस प्रकार परिवर्तन के क्षेत्रमें दोनों तरहसे सभाएं निकम्मी सी रहती हैं ।
परवार सभा की स्थापना के पहिले बुंदेलखंड में परवार और
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