________________
इन्दोर में
[ १४१
•
"
उद्योग में है । मिट्टी से ही बाग नहीं बनता उसके लिये चतुर और कर्मठ माली बनना पड़ता है । सेठजी ने मिट्टी का ढेर दिया है पर माली न बने...., आदि । व्याख्यान से काफी क्षोभ हुआ । एक समाजनेता ने, जो बाहर से आये हुए थे, मेरी वातों का यह कहकर तीव्र विरोध किया कि ऐसे महान व्यक्ति का ऐसे अवसर पर अपमान न करना चाहिये, मैंने हँस दिया । सेठजी ने कहा-- - मुझे जो सीख दी गई है उसके लिये मैं आभारी हूँ । पंडितजी के (मेरे) कहने में कोई बुराई नहीं है, दूसरे वक्ताओं को पंडितजी के कहने का विरोध न करना चाहिये । पंडितजी ने तो मेरे ओर संस्था के भले के लिये ही कहा है।
:
·
•
कभी कभी तो मेरा अभिमान यों ही भड़क जाता था ।
.
•
एक बार विद्यालय में अध्यापकों को कुछ सूचनाएँ आईं । खास मुझ को लक्ष्य कर के उसमें कुछ नहीं था, सबके लिये सूचनाएं थीं. पर उन्हें पढ़कर मुझे बड़ा बुरा मालूम हुआ । मनमें सोचा ये लोग कुछ समझते तो हैं ही नहीं धन और अधिकार के बल पर विद्वानों को यों ही डाँट डपट बताया करते हैं । बस, सात आठ पेजका एक चिट्ठा लिखकर बाकायदा ऑफिस में भेज दिया जिस में था कि शिक्षा-प्रणाली क्या होती है, संस्था क्या चीज़ है,
·
1
अधिकारी को किस ढंगसे काम करना चाहिये आदि । अंत में कुछ इस ढंग का लिखा था कि अध्यापकों के पास सूचनाएं काफी सोच समझ के भेजना चाहिये । अध्यापक ढोर नहीं चराते
:
:
•
!
: मनुष्य, चराते हैं।