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सिवनी में कुछ माह [१२७ काव्य में यह विवादग्रस्त विषय न लाया जाता तो . ठीक था। मैंने इस विषय में चर्चा करने की चुनौती दी पर कोई आगे नहीं आया।
मैं भी अपनी काव्यसाधना में लगारहा इस प्रकारः विजातीय-विवाह __ का भी आन्दोलन न उठा पाया । ।
. 'क्षत्रिय-रत्न' एक बीस सर्ग का महाकाव्य बननेवाला था इसमें मैंने श्रृंगार वैराग्य करुणा वीर भक्ति वीभत्स आदि रसों का वर्णन, नैतिक उपदेश, कर्तृत्ववाद, कर्मवाद आदि . दर्शनशास्त्र, वन, नगर भवन आदि का वर्णन, विस्तार से किया था, असहयोग युग आजाने से अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार-नीति और सत्याग्रह और असहयोग के नाम भी लादिये थे। आज बीस वर्ष बाद भी · वह रचना बहुत शिथिल नहीं मालूम होती फिर भी वह काव्य मैंने बीच में ही छोड़ दिया, करीब नवसौ पद्य या बारह सर्ग लिख पाया। कारण यह था कि इस काव्य के नायक के आठ विवाह हुए थे, काव्य जब शुरू किया था तब इतनी सुधारकता नहीं थी बाद में जब सुधारकता पनपी और मुझे शास्त्रों में भी बहुपत्नीत्व की प्रथा खटकने लगी तब आठ विवाह वाले इस नायक का काव्य लिखना भी मैंने बन्द कर दिया इस प्रकार वह अधूर। काव्य जैन मार्तण्ड की. फायलों में ही रह गया । 'सम्यक्त्वशतक' नामका एक कवितामय धर्मग्रंथ भी मैंने लिखा था वह भी जैन-मार्तण्ड की फायलों में है। इसमें जैनसम्प्रदाय के अनुसार सम्यग्दर्शन का साङ्गोपांग वर्णन है।।
सिवनी में भी कुछ दिनों के लिये ध्यान का भूत सवार हुआ • था । सिवनी के जैन मन्दिर में विशाल मूर्तियाँ हैं, एक विशाल