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बनारस में अध्ययन
'अध्यापक जी से असहयोग सा करना चाहिये ।
दूसरे दिन छुट्टी थी, उस दिन हम लोग उनके साथ मन्दिर में नहीं गये इससे क्रुद्ध होकर उनने हुक्म निकाल दिया कि जो मेरे साथ मन्दिर में नहीं आये उनका खाना वंद | इस बात से विद्यार्थियों में दो दल हो गये । एक दल का कहना था कि उनको रसोई घर के विषय में क्या अधिकार है हम उनके हुक्म को तोड़ेंगे। मेरा कहना था कि आज भूखे रहकर ही सत्याग्रह करना चाहिये बनी बनाई रसोई जब व्यर्थ जायगी तत्र उन्हें अपनी भूल का ज्ञान होगा और आगे लड़ने के लिये अपना नैतिक बल बढ़ जायगा । कुछ ने खाकर हुक्म तोड़ा मैंने नहीं खाकर आगे लड़ने की भूमिका वनाई ।
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स्याद्वादप्रचारिणी सभा का मैं मंत्री था सागर से आने के बाद शीघ्र ही मुझे यह पद मिल गया था, क्योंकि वक्तृत्व में मेरी रुचि सब से अधिक थी । उस दिन मैंने एक घंटे तक इस बात पर भाषण दिया कि संस्थाके कार्यकर्ता कैसे होना चाहिये । पंडितजी पर काफी कटाक्ष थे उनका नाम न लेकर मैंने खूब आड़ीटेड़ी सुनाई थीं । मजे की बात यह कि पंडितजी को ही सभा का अध्यक्ष बनाया था। बाद में पंडितजी ने अध्यक्ष की हैसियत से जो भाषण दिया उसमें वर्षा की बूंदों की तरह शापवर्षा थी । "समाज में तुम्हें
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कोई दो कौड़ी में भी नहीं पूछेगा तुम लोग भीख माँगते फिरोगे तुम लोग नालायक गधे आदि हो" यही उनके भाषण का सार था । पंडितजी जितने उत्तेजित हुए मुझे अपने व्याख्यान की सफलता का उतना ही अधिक विश्वास हुआ ।
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