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सिवनी में कुछ माह
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है अब ये बातें मामूली हैं, पर उस ज़माने में जैन समाज में ये बातें थीं । पहिले भी किसी विद्वान के ध्यान में आईं होंगी पर समाज
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में विचारों का प्रचलन नहीं था । विधवा विवाह की आवाज़ उठी थी पर उसका मुझे पता नहीं था और जब पता लगा तब यह अन्तर मालूम हुआ कि वह समय की दुहाई देकर उठी थी पर मैं विधवा-विवाह पर वर्मानुकूत्रता की छाप लगना चाहता था । इतना ही नहीं ब्रह्मचर्याणुत्रन के सामूहिक प्रचार के लिये विधवा-विवाह को आवश्यक समझता था । जैन समाज के लिये ये सत्र विचार बहुत कुछ नये ओर क्रान्तिकारी थे ।
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बस, ज्यों ही मैं अपने विचारों पर स्थिर हुआ कि धीरे धीरे इनका प्रचार शुरू कर दिया। हाँ एक नियम मैंने प्रायः जीवनभर निचाहा है कि पढ़ाते समय अपने सुधारक विचारों का जिन्हें अधिकरियों के सामने छुपाने की ज़रूरत हो मैंने कभी क्लास में प्रचार नहीं किया । अगर किसी जिज्ञासु विद्यार्थी ने मेरे सुधारक विचारों के विषय में पूछा तो उससे यही कहा कि पढ़ाई का समय वति जाने पर मेरे घर पर या और कहीं इस विषय में चर्चा करो । सिवनी में मैंने इस नीति का प्रारंभ किया और इन्दोर बम्बई में भी इसका पालन किया।
मेरे घर पर ये सब चर्चाएँ होने लगी। कुछ वयस्क विद्यार्थी 'तथा अन्य गृहस्थ भी इस चर्चा में भाग लेने लगे ।' कुछ नवजवानी का जोश होने से अधिकारियों केः रुष्ट होने की पर्वाह कम, फिर
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कुछ इस बात का घमंड कि मैं एक विद्वान हूँ, धार्मिक मामलों में
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