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बनारस में अध्यापक [१११ 'तेरा नाम और तेरा यश सब तेरे लिये पराया हो जाने वाला है। अगर
मरने के बाद तू ऐसा ही जगह पैदा हो जहाँ तेरा यश फैला हुआ है 'और तेरी बन की पूजा होती है तो क्या तुझे भी उन पुजारियों में ही शामिल न होना पड़ेगा ? इस प्रकार मरने के बाद तेरा नाम और यश तेरे लिये भी पराया हो जायगा तंत्र नाग की अमरता के लिये क्यों मरा जाता है ? तू समझता है दुनिया को तेरी सेवा की जरूरत है ! पर ज़रा मर कर देख, 'क्या दुनिया का कोई 'काम तेरे बिना अड़ता है ? यदि नहीं तो सेवा के नाम पर 'मानं न मान मैं तेरा महमान' क्यों बनता फिरता है ? अगरत सेवा ही करना चाहता है तो असफलता से दुःली क्यों होता है ? क्या धर्म से मनुष्य दुःखी होता है, अहंकार और मोह ही मन में दुःख पैदा करते है-धर्म नहीं, इसलिये निर्मोह बन, निरहंकार बन, दुनिया की छातीपर अपनी सेवा मत लाद, निद बन, निश्चित बन, एकान्तसेवा चन, और भक्त बन, विसी तरह इसरों का बोझ मत बन | दूसरों के मार्ग में आड़े न आना यह दूसरों की बड़ी से बड़ी सेवा है। कोई लेने आये और तो स पुठं हो तो भले ही देदे पर देने का व्यसन मत लगा।"
जब मैं समझदार हुआ हूं या समझदार कहलाने लायक आतमी समरी रुचि ऐसी हो रही है पर दो शक्तियाँ हेचि को सफलता पूर्वक दवाती रही है और इण्टर मार मार का मुझे चलाती रही हैं।
एक शक्ति कहती है जैसा सोचता है अगर सभी लोग ऐसा ही सोच लेंत, पुराने महाना भी यही सोच लेते तो आज यह
के
भक्त वन, किसी, निवेदन,
किन दुनिया का