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बनारस में अध्यापक
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एक दूसरी शक्ति कहती है "अगर तुझे कुछ करने की शक्ति 'मिली हैं तो उससे तुझे शक्तिमान कहलांना ही चाहिये । यश ही अमर जीवन है आदर ही सच्चा व्यक्तित्व हैं । खराब और साधारण व्यक्ति भी कर्मठता के कारण महान बने हैं तू अगर महान बनता है तो इसमें बुराई क्या है ? जगत् मूर्ख है जगत् को समझदारों का बोझ उठाना ही पड़ेगा, उनकी तू पर्वाह कहाँ तक करेगा ? जगत् को तू बेचारा क्यों समझता है ? वह डाकुओं का निराह है, सभी लुटारू हैं तू उन्हें न टूट पायगा तो वे तुझे टूटेंगे | टूटना या इंटना दो में से एक अनिवार्य है । छूटना अगर शैतानियत है तो लुटना हैवानियत है | योग्यता रहने तु हैवान क्यों बनता है, शैतान वन । हैवानियत गुनाह बेलज्जत है, शैतानियत गुनाह है पर उस में लज्जत ता है । सब अपनी पर्वाह करते हैं तू भी अपनी पर्वाह कर, त्यांग एक तरह की मूर्खता है। हाँ, वह लाभ के लिये हो तो बात दूसरी है। जड़ता ही बड़ा पाप है तू जड़ त वन, कर्म कर ।
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इस प्रकार एक खुदाई तावृत दूसरी शैतानी ताकत रुचि के अनुसार चैन से नहीं बैठने देती । खुदाई ताक़त प्रेम है, शैतानी ताकत मोह है । कब कौन रुचिपर हण्टर मारती है, यह कहना कठिन है ।
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इन बीस वर्षों से या की बात तो दूर, में अपने निकट से निकट मित्रों को या दूर रहनेवाले परिचितों को भी खुश नहीं कर पाया, जो ठीक ऊँचा उसी पर चलने लगा, इससे नाराजी और असहयोग और अर्थहानि ही मिली जिससे मान होता है कि प्रेम