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आत्म कथा
निःसन्देह उनकी स्पष्टवादिता आदरणीय श्री पर इस नफेबाजी से मैं ऐसा क्षुब्ध हुआ कि उनकी स्पष्टवादिता की मै चंद्र न कर सका । यह तो पीछे मालूम हुआ कि साड़ी ख़रीदने में इस स्पष्टवादिता की वृद्र करता तभी लाभ में रहता ।
अत्र
अब मैं एक और घनिष्ट मित्र के यहाँ पहुँचा उनने एक और बढ़िया साड़ी बतलाई मेरी पत्नी को वह अधिक पसन्द आई, कीमत के विषय में जब बातचीत हुई तब उनने कहा- हमारी खरीदी २८ ) की है, आपसे च्या नफा ले, आप ख़रीद के दाम ही दे दीजिये | मैंने २९) निकाल कर दिये। उनने कहा चौदह आना अभी हैं नहीं, आप २८) ही दे दीजिये, हमारी इतनी बड़ी दुकान है, अगर आप सर्गख विद्वानों से दो आने का घाटा ही उठा लिया तब भी कुछ हानि न होगी। यह कहकर उनने एक रुपया : वापिस कर दिया । मैंने मन में कहा इसे कहते हैं सज्जनता, से कहते हैं गुणानुराग | परन्तु पीछे मालूम हुआ कि कपड़े की दुकानों में प्रत्येक कपड़े पर एक नियत अंक अधिक लिखकर खखा जाता : है । उनकी दूकान में १०) अधिक लिखने का रिवाज़ था, वास्तव में उस साड़ी की खरीद १८ ) थी, इस प्रकार फी सैकड़ा ५६ ) के हिसाब से नफा लेने पर भी दो अने छोड़ने का जो यश • उनने लूट लिया था और मेरे ऊपर जो अहसान का बोझ लाद दिया था उससे मैं कराहने लगा | मैंने किसी से कहा तो कुछ नहीं; • यह कोई कानूनी जुर्म तो था ही नहीं, पर नने कहा ये लोग वे ही हैं जो बिल्कुल नग्न दिगम्बर महात्माओं के दर्शन किये बिना भोजन नहीं करते । जैन तीर्थंकर, जो निष्परिग्रहता की चरम सीमा: कहे जा