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आत्म कथा नय भी कम न था । अविनय करके भी शिष्टाचार का भंग नहीं किया इससे मैंने काफी चालाकी का परिचय दिया और इससे मेरा पक्ष प्रबल हो गया पर इसकी नौवंत न आती जब पंडितजी गाम्मटसार पढ़ाने में होश्यार होते । दुधारू गाय की ही लात सही जाती है। . इस झगड़े में मुझ से कितनी ही गलती क्यों न हुई हो पर आगे चलकर समाज से संघर्ष करने का जो मेरा भाग्य था उस का अभिनय करने की तैयारी अवश्य हुई । इस प्रकार उस अप्रिय और अनुचित घटना से भी मुझे बहुत कुछ लाभ ही हुआ । खराब घटनाएँ भी किसी किसी को अच्छा फल देजाती हैं। मैं इस विषय में अपने को कुछ सौभाग्यशाली ही समझता हूं क्योंकि बहुतसी अप्रिय घटनाएँ मुझे अपने विकास में सहायक ही मालूम हुई हैं। इस सूक्ष्म और असीम विश्वमें कल्याण और अकल्याण वहाँ कहाँ छिपे पड़े हैं उस को यह तुच्छ प्राणी क्या जान सकता है ? वह स्वज्ञ होकर भी ज्ञ की अपेक्षा अज्ञ अनंतगुण रहता है। छोटी छोटी और अप्रिय से अप्रिय घटनाएँ भी मानव जीवन को कहाँ का कहीं लेजा सकता हैं इसका थोड़ासा ही विचार करने से मनुष्य को चकित होजाना पड़ता है । खैर, उस अप्रिय घटना के बाद बनारस में रहना मझे अच्छा न लगा । धर्मशास्त्र की पढ़ाई का साधन वहीं था ही नहीं इलिये मोरेना जाने की आशा में मैंने बनारस छोड़ दिया।
१४. मोरेना में सागर वनारस आदि विद्यालयों में विद्यार्थियों को भोजन तथा .. एकाध रुपया हाथखर्च मिलने का नियम था। पर मोरेनामें आठ