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बनारस में अध्ययन [१०१ में अपराध का आरोप करना होगा | वह चला गया। विद्यार्थियों से पूछा तो उनने कहा-तुम जाते थे इसलिये हम जाने को तैयार हुए थे नहीं तो हमें क्या गरज थी । इस प्रकार उन रिश्तेदार की यह चाल व्यर्थ गई । इतना ही नहीं हम लागों की पंडितजी पर घृणा हो गई।
पंडितजी को त्यागपत्र लौटाने का कोई वहाना न मिला इस प्रकार उन्हें बनारस छोड़ना पड़ा।
पंडितजी के साथ झगड़ने से बौद्धिक संघर्ष का श्रीगणेश हुआ । स्यावाद विद्यालय बहुत दिनों से झगड़ों का घर था । दलबन्दियाँ होती ही रहती थीं मेरे सामने भी दलबन्दी हुई थी। लोग उत्तेजित हो जाते, कुछ कर बैठते, फिर माफ़ी माँगते इस प्रकार चञ्चल क्षोभ बना रहता था । पर मैं झगड़ों से बिलकुल बचा रहता था । विद्यार्थियों में मैं किसी की दृष्टिमें सीधा भाला अर्थात् बुद् और किसी की दृष्टि में गम्भीर था । कोई यह कल्पना नहीं कर सकता था कि मैं किसी झगड़े का मुख्यपात्र बन सकता हूं या टिक सकता हूं। पर पंडितजी के साथ झगड़ने में मैंने काफी दृढ़ता का परिचय दिया, एक भी अपशब्द नहीं निकाला गर्जन तर्जन भी नहीं किया और झगड़े का अंत मेरे पक्ष में हुआ इससे मन ही मन एक तरह का घमंड आ गया। संघर्ष में गम्भीरता से टिक रहने का आत्मविश्वास भी हो गया।
जिस बात को लेकर झगड़ा हुआ था वह बिलकुल तुच्छ थी । आज तो यही मलम होता है कि विद्यार्थी की हैसियत से भने ज्यादती की थी। पंडितजी की मल काफी थी पर मेरा अघि