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विवाह के दुष्परिणाम ९३ . मेरी इस पशुता का कारण बाल्यावस्था का अज्ञान तो था . ही, साथ ही विवाह के पहिले बूढ़ी स्त्रियों ने पत्नी को दवाये रखने या वश में रखने की जो नाना ढंग से शिक्षा दे रक्खी थी वह भी था । एक नये घर में बिना किसी सन्मान या. प्रेम के तीन तीन रात ज़मीन पर पड़े रहने का कष्ट तो वही जानती होगी । पर कुरूढ़ियों ने . मानव-समाज को जो कष्ट दिये हैं उनके सामने ये कष्ट किस गिनती में हैं। .
पत्नी की उम्र और भी छोटी थी वह न तो काम-वासना जानती थी, न दाम्पत्य जीवन की दूसरी बातों की आवश्यकता का ही उसे अनुभव था । इधर मैं भी ज़रूरत से ज्यादा मूर्ख था इसलिये पहिली बार आपस में कोई आकर्षण न हुआ। बस मुझे सन्देह होने लगा कि इसमें पतिप्रेम नहीं है, और सीता जी के सतीत्व की याद करके मन ही मन रोने लगा। यह न सोचा कि सीताजी सरीखी पत्नी की आकांक्षा करने वाला मैं रामचन्द्र जी के पैरों की धूल बराबर भी हूँ या नहीं. | कुसंस्कारों ने, सहज अहंकारने और बाल्यावस्था की अज्ञानता ने सीधीसादी बात को वितण्डारूप दे दिया था। गनीमत इतनी ही थी कि यह सब भीतर ही भीतर था बाहर कुछ नहीं । ज्यों ज्यों मेरी पशुता हटती गई त्या त्या भीतर ही भीतर सफाई होने लगी । पर इसमें सन्देह नहीं कि असमय में किये गये मेरे विवाह से मेरे जीवन में अनेक गहरे घाव लगे धीरे धीरे वे पुर तो गये फिर भी ऐसे चिह्न छोड़ गये जिनमें समय ..समय पर दर्द होता रहा ....: .