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आत्म-कथा
देकर भी इतनी तीव्र मात्रा में नहीं हुई कि मेरे जीवन को पीस डालती या भ्रष्ट कर देती । किसकी कृपा से मैं सँभला रहसका इसके लिये किसका नाम लूं ! वह ईश्वर हो, नियति हो, या कोई और हो उसे सौ सौ प्रणाम करके संकट मोचन . के आनन्द को व्यक्त करता हूँ | जिसने नारी के सहयोग की आवश्यकता को नहीं समझा, जो उसका भार उठाने की शक्ति नहीं रखता जिसका शरीर परिपक्क नहीं हुआ उसकी शादी करने से विडम्बना ही विडम्बना है। ... पत्नी के विषय में जो कुछ मैंने सीखा था वह इतना ही कि पत्नी दासी है उसे पति को प्रसन्न करने का हर तरह प्रयत्न करना चाहिये। मानापमान की उसे चिन्ता ही न करना चाहिये । इस प्रकार पक्षपाती विचारों से रंगे हुए दिल को लेकर जब मैं सुहागरात में पत्नी से मिला तो मुझे बड़ी निराशा हुई, मैं तो यह समझकर गया था कि पत्नी मेरा स्वागत करेगी, प्रणाम करेगी, रिझायेगी पर जब मैंने साड़ीसे ढंका हुआ एक मौन.प्राणी. देखा और उसने यह सब कुछ न. किया तो भीतर ही भीतर मेरा अहंकार गर्जने लगा । उस समय तक नायक-नायिकाओं की वृत्ति समझने लायक साहित्य भी नहीं पढ़ा था । पूरा लट्ठ या ग्रामीण था, विशेषता इतनी थी कि घमंड खूब था । वह लज्जा के मारे नहीं बोली, मैं घमंड के मारे नहीं बोला । इस प्रकार तीन दिन निकल गये। मैं विस्तर पर सोता? था वह चुपचापं एक दरी बिछा कर सोजाती थी । तब वधू. होने से वह महमान थी फिर भी मैं इतना न कहसका कि जमीन पर क्यों सोती हों ? मैं आखिर पति. था, एक दासी का मैं सन्मान कैसे कर सकता.था.? .