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'आत्म कथा एक हिन्दू स्त्रीसे. यह कहा जाय कि उसे पति से प्रेम नहीं है, यह उसके ऊपर बड़ा भारी कलंक है, इससे बचने के लिये उसने इस . प्रकार की शिकायत करना काफी कम कर दिया था। . परन्तु मुंह से न कहने पर भी असन्तोष--दुःख उसे रहता था और बातें बनाकर अपनी पत्नी का मुंह बन्द कर देने पर भी मैं भीतर ही भीतर रोता था, खीजता था और मुझे इस परिस्थिति में डालनेवालों पर ऋद्ध होता था ।
सचमुच इस में शान्ता का कोई अपराध नहीं था । उस परं पत्नीत्व का भार भले ही लाद दिया गया था पर आखिर वह वालिका थी । वह हमारी गरीवी को क्या समझे ? उसकी तो यह कल्पना हो सकती थी कि विवाहित जीवन माँ बाप के घर के जीवन से अधिक वैभव विलास का जीवन है। यह जब उसने नहीं पाया तो असन्तोष होना स्वाभाविक था । स्पष्टवादिता उसे पैतृक या मातृक संस्कारों से मिली थी इसलिये उसके मुंह से बिना किसी रोष के सहज ही निकल जाता था कि ऐसा अनाज तो हमारे यहाँ [ पीहर में जानवरों को डाल दिया जाता है ऐसी और इतनी • लकड़ियां तो यों ही तापने में जला दी जाती हैं । जब पिताजी
सुनते तो जल-भुनकर खाक हो जाते, वे मुहल्ले की स्त्रियों में उसकी निंदा करते; पड़ौसियों से उसे फटकार मिलती, वह अपने मांबाप के घर .. कहती जाती, इस प्रकार भीतर ही भीतर वातावरण खूब विषैला हो. जाता. । उस समय पिताजी और शान्ता, के बीचमें जो खाई खुद गई. वह एकं प्रकार:से.जीवन भर नहीं भर पाई। मुझे. उनके जीवन