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पाठशाला का ज्ञानदान
४९ तपस्या करता रहा । वास्तविक तप क्या है इसका तो बड़े बड़े विद्वानों और वृद्धों को भी मुश्किल से पता लग पाता है और सौ में नब्बे तो जीवन भर नहीं समझत, फिर मुझे क्या पता लगता ? कुछ महिने तक तपस्यों आदि का यह भूत सवार रहा बाद में । अपने ही आप उतर गया। इन दिनों रात में बड़े मजे मजे के स्वप्न आते थे। दो स्वप्न तो अब भीयाद हैं।। . . ..
: एक रात को मुझे यह स्वप्न आया कि, मैं मरकर सोलहवें स्वर्ग में देव हो गया हूं। देव होने पर भी अप्सराएँ या सोने चाँदी । के विमान न दिखे, दिखा सिर्फ यह कि मैं आसमान में बहुत ऊँचें चहलकदमी करता हुआ बराबरी के अनेक देवमित्रों के साथ नंदीश्वर द्वीप के अकृत्रिम चैत्यालयोंकी वन्दना करने जा रहा हूँ
और उन देवताओं से कह रहा हूं कि, "मुझे यह तो आशा थी कि मैं मरकर किसी अच्छी जगह जाऊंगा पर यह आशा नहीं थी कि मैं सोलहवें स्वर्ग तक पहुँच सकूँगा और आप लोगों के दर्शन कर सकूँगा। ... जब देवों से बातचीत करता हुआ मैं नंदीश्वर द्वीप जा रहा
था तब सबेरा हो जाने से अर्थात् चार बज जाने से पाठ याद करने के लिये जगा दिया गया....आह : उस समय कितना दुःख हुआ मानो संममुच स्वर्ग से मर्त्य लोक में, पटक दिया गया । :
-: इस से बढ़कर स्वप्न एक दूसरे दिन आया कि मैं विदेहक्षेत्र ___ में जिनेन्द्र हो गया हूं। ___...: मैं वीचमें ऊँचे आसन पर बैठा हूं गणधर मुनि देव राजा
सत्र चारों और नीचे बैठे हैं ।। मैं मन में सोच रहा हूं कि आखिर