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आत्म कथा
और मुझे बेहोश करने को क्लोराफार्म सुंघाया | उस की गंध मुझे इतनी अप्रिय मालूम हुई कि उस की याद से मुझे सदा भय लगता था। : : क्लोरोफार्म मूंघते समय मैंने इस बात की बहुत कोशिश की कि में बेहोश नहीं होऊंगा पर मानों इच्छा के विरुद्ध अनन्त में या शून्य में विलीन हो गया । अपरेशन को सिर्फ चार मिनिट लगे पर में उसके पहिले ही होश में आ गया । उस समय पात्र में टांके लगाये जा रहे थे। मैंने सोचा अगर मैं हिलूंगा तो फिर ये क्लोरोफार्म सुंघा देंगे इसलिये चुपचाप बेदना सहता रहा । इसके बाद डाक्टरों ने कहा-आज अस्पताल में ही रह जाओ, पर मैं तो दौड़ता हुआ पाठशाला में आया ।. यह दौड़ना कुछ भारी हुआ। रात में घाव इतना भर गया कि मेरी आँख ढक- गई और वेहिसाव वेदना हुई। रात में पिताजी भी आ गये । दूसरे दिन टांके खोल देने पर वेदना कम हुई और धीरे धीरे घात्र आराम होगया। इस प्रकार पूर्व जन्म के ऋण की पोटली से पिंड छूटा ! इसके लिये मुझे सिर्फ १॥) खर्च पड़ा। वह भी आराम हो जाने पर एक डाक्टर और कम्पाउन्डर को इनाम के रूप में।
... कवित्व-मैं अपने को कवि नहीं मानता । पर पद्यकार को कवि कहने का रिवाज है इसीलिये इस शब्द का यहां प्रयोग किया गया है। मेरे इस कवित्व की उत्पत्ति या अभिव्यक्ति का कारण .एक मनोरंजक घटना है।
. जब मैं सागर पाठशाला में पढ़ता था. तब एक दिन एक विद्यार्थी से.. झगड़ा हो गया और उसने मुझे धक्का मार दिया । वह शारीरिक बल में अधिक था इसलिये मैं चुप रहा । पर इस अपमान