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आत्म कथा पिता के मरने के बाद सम्पत्ति के एक भाग के रूप में ही मिल सकता है । दूल्हा राजा को बढ़ियां से बढ़ियां मोटर चाहिये, साइकिल चाहिये, घड़ी चाहिये, विलायत जाने का खर्च चाहिये, समधी महाराज को इतन हजार की थैली चाहिये यह सब कन्या का दायभाग नहीं है । कन्या का दायभाग वही हो सकता है जो उसे स्त्रीधन के रूप में मिले, जिस पर पति का और उसके कुटु. म्बियों का कोई अधिकार न हो । उसे कन्या का पिता अपनी सम्पत्ति के अनुसार प्रसन्नता से अर्पित करे । विवाह के समय या उससे पहिले तो देनलेन के विषय में कोई बात मी न होना चाहिये । .. पैतृक सम्पत्ति में से हिस्सा पाने के अधिकारी वे ही हो सकते हैं जो मातापिता के बुढ़ापे में उनके पालन पोषण के लिये जिम्मेदार हों, लड़की और जमाई यह जिम्मेदारी अपने ऊपर नहीं लेते इसलिये उन्हें हिस्सा नहीं मिल सकता।
यह नियम वहाँ अवश्य खटकता है जहाँ किसी श्रीमन्त कुटुम्ब की लड़की किसी गरीव कुटुम्ब में व्याही जाती है और गरीव बन जाती है । उसका भाई पुरुष होने के कारण लखपति 'वनता है और वह नारी होने के कारण दीन बन जाती है किन्तु
एक गरीब लड़की भाई की पंनी बनकर रानी बन जाती है। "निःसन्देह इस में एक नारी को सुविधा और एक को असुविधा हुई है इसलिये टोटल बराबर रहा है परन्तु समाज--व्यवस्था में सिर्फ टोटल का विचार नहीं किया जाना चाहिये उस में प्रत्येक व्यक्तिको 'उन्नति और भलाई का विचार होना चाहिये। अवनत को उन्नत बनाने