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आत्म कथा
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विदेह क्षेत्र का मानों स्वाद आगया था । इसलिये इस जीवन का बड़ा से बड़ा आनन्द मुझे निःसार और अग्राह्य जचता था । उस - समय मुझे. वड़े से बड़ा प्रलोभन भी नहीं झुका सकता था । अगर कोई कहता कि तुम कल मर जाओगे तो मुझे इस समाचार से प्रसन्नता ही होती क्योंकि यह निश्चित था कि मरकर मैं विदेह में या स्वर्ग में जाऊंगा, वहाँ तीर्थंकरों के दर्शन होंगे, रोग शोक झगड़ा न होगा, बड़ी शांन्ति और बड़ा आनन्द मिलेगा । इस समय खाने पीने का मोह भी चला गया था एक बार थोड़ासा खालेता था और दिनभर इन्हीं विचारों में मग्न रहता था । ..
मरने के बाद स्वर्ग या विदेह अवश्य मिले इसके लिये कुछ • तपस्या की तरफ भी ध्यान जाने लगा । देवदर्शन में समय अधिक लगने लगा | खानपान में कुछ और कष्ट सहने की इच्छा
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: पाठशाला के भोजन में कोई विशेषता नहीं थी, इसलिये उसमें तो • कुछ त्याग न कर सका सिर्फ ऐसे ही नियम करता था कि किसी
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दिन घी नहीं खाना, किसी दिन दाल नहीं खाना, किसी दिन शाक नहीं खाना, एक या दो वार के सिवाय तीसरे बार कुछ न खाना,
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बीच में पानी आदि नहीं पीना । कुछ दिनों के लिये ऐसा भी नियम विना लिया था कि थाली में एक बार जो परोसा जायगा उतनाही खाकर उठ आऊंगा । फिर यह नियम बनाया कि दौआ ( रसोईये 'को सब लोग दौआ कहते थे ) जब तक परोसता रहेगा तब तक खाऊंगा अगर थाली खाली हो जायगी और दौआ ने परोस पाया तो एक सेकिन्ड भी न रुककर भूखा ही उठं आऊंगा । इस प्रकार स्वर्ग और विदेह की लालसा से दौआ आदि को तंग करते करते