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खिलाडी
[३३ .. पर सुनते ही में डर जाता । पुराणों के स्वाध्याय ने या और अज्ञात __ संस्करोंने मुझे कुछ ऐसा पाप-भीर बना दिया था कि चोरी और
व्यभिचार की मुझ में हिम्मत ही नहीं रहगई थी । नारी जाति के विषय में तो कुछ ऐसी भावना बन गई थी कि मैं दस लड़कोंसे भले ही लड़जाऊँ पर एक लड़की से. डर जाता था .। लड़कों को या बड़े बूढों तक को गाली दे जाता पर किसी स्त्री का सामना पड़ता तो भागने के सिवाय और कुछ न कर पाता था । स्त्रियों को गाली देना तो दूर की बात, पर. किसी स्त्री के सामने किसी
को गाली देना भी बुरा समझता था । अगर कोई लड़का किसी __ स्त्री के सामने किसी दूसरे लड़के को गाली देता तो मैं उसे मार
बैठता। मुझे नारी के देखते ही सीता और अञ्जना याद आती थीं। पद्मपुराणने इन महिलाओं की भक्ति से मेरे हृदय को भर दिया था। . उस प्रतिकूल वातावरण में जिस अज्ञात शक्तिने मेरे चरित्र की पूरी तरह रक्षा की उस महाशक्ति को न जानते हुए भी न जाने कितनेबार मैंने धन्यवाद दिया है, न जाने कितनेवार एकान्त में . साश्रुनयनों से प्रणाम किया है। वहीं महाशक्ति जगदम्बा, ईश्वर, सत्य, अहिंसा, कर्म, प्रकृति, पुण्य, आदि क्या है यह मैं अभी भी कुछ नहीं कहसकता । मेरा निरीश्वरवाद कैसे ईश्वरवाद पर अवलम्बित है यह एक पहेली ही है। आज सोचता हूँ कि विधाता के विधान में इन पहेलियों के सिवाय मनुष्य के मानमर्दन के दूसरे उपाय क्या पर्याप्त नहीं हैं ? जो इन पहेलियों को बना रक्खा है। खैर । .
उस आवारागर्दी के जीवन में भी कोई स्नेहमयी महाशक्ति अपने पवित्र अंचल से मेरे ऊपर आनेवाली पाप की मक्खियाँ उडा