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आत्म कथा
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पाकर पुस्तक की तरफ देखने लगे या किसी दिन पकड़े गये तो आराम से सिर झुकाकर दो चार गालियां खाली और उनके जाने पर फिर ऊँघने लगे । मेरा तथा और बहुत से विद्यार्थियों का यही क्रम था । संचालकों ने यह कभी नहीं सोचा कि अगर इन लड़कों को पूरी नींद दी जायगी तो ये ऊँघना बंद कर देंगे और कुछ ध्यान से पढ़ सकेंगे। उनके सामने तो वनारस की वे कहानियाँ थीं कि वनारस में विद्यार्थी अपनी लम्बी चोटी खूंटी से बाँधकर - पढ़ते हैं कि नींद आये तो चोटी को झटका लगने से खुल जाय ।
चोटी तो प्रायः सभी विद्यार्थियों ने बढ़ाई थी इसलिये मैंने भी, पर इस प्रकार खूंटी से बँधने का सौभाग्य उसे नहीं मिल पाया । इस प्रकार के कृत्रिम जागरण से जो रटाई होती है उस में मुँह तो बजता है पर मन नहीं वजता, जब कि अध्ययन मन की मजदूरी है मुँह की नहीं । इस प्रकार से हम लोग रात भर दों श्लोक रटते थे और सवेरे भूल जाते थे । इस असफलता की छाप मेरे ऊपर यह पड़ी कि मैं अपने को मूर्ख समझने लगा । यों तो हरएक मनुष्य कुछ न कुछ मूर्ख होता है पर मैं जितना था उससे भी अधिक समझने लगा । एक तरह से आत्मविश्वास नष्ट हो गया । यह भी एक कारण था कि कई वर्ष पढ़ने पर भी मैं विशेष न पढ़ पाया ।
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पाठशाला के जीवन में एक विशेष गुण था । वहां का वातावरण हरएक विद्यार्थी को विनीत और आज्ञापालक बना देता था । एक ही मकान में सब विद्यार्थी, अध्यापक अधिष्ठाता आदि रहते थे और उसी मकान में पढ़ाई होती थी, इस प्रकार दिन रात का