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खिलाड़ी
[२९ करके स्कूल की छुट्टीक समय अपनी अपनी पुस्तकों का बस्ता दवाये अपने अपने घर पहुँच जाते। ..
पर यह पोल बहुत दिन न चली । कुछ दिनों में स्कूल की तरफ से गैरहाजिरी की जाँच हुई और भंडाफोड़ हो गया । पिताजी जबर्दस्ती पकड़ पकड़ कर मुझे स्कूल ले जाने लगे। पर. इस काम में मैंने उन्हें इतना परेशान किया और स्वयं दुखी हुआ
कि कुछ तो दया के कारण और कुछ परेशानी के कारण उन्हें __ मर पढ़ाने का इरादा छोड़ देना पड़ा इस प्रकार में स्वतन्त्र अर्थात् स्वच्छन्द हो गया ।
उस दस ग्यारह वर्ष की उम्र में व्यापार वगैरह तो कर ही नहीं सकता था। पिताजी के पास रोजगार भी ऐसा न था जिस में मेरी रुचि होती। अनाज के थैले लादना मेरे वश के बाहर था और पिताजी भी नहीं चाहते थे कि में इस काम में पहूं इसठिय मैं स्वतन्त्र अर्थात स्वच्छन्द कर दिया गया। दिन भर गिल्ली गोली
और तास खेलता । कौड़ियों से जुआ भी खलता था । पैसों से जुआ ग्वटने की हिम्मत कभी नहीं हुई न इतने साधन ही थे । लगातार दस दस घंटे तक तास ग्बलना मेरे लिये स्वामाविक था। खलसे में यकता न था। असल म मैं व्यसनी हो गया था। पर बड़ा आदमी बनने की धुन अब भी सवार थी इसलिये धीरे धीरे मैंन टोली बनाई और बहुत से लड़कों का सरदार बन गया। अपने दलको लेकर मैं चूमने जाता, दूसरे दलों से युद्ध करता और भी कुछ न कुछ आकर्षक और साहसपूर्ण कार्यक्रम रखता । मेरे घर पर दल का आफिस बना इधर उधर की अच्छी बुरी तसवीरों में वह