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खिलाड़ी
[२७ मूलचन्दजी का पुत्र बीमार पड़ा। उसके लिये किसीने बता दिया कि अमावस के आधीरात के बाद श्मशान में नंगे जाकर चिता में से हड्डी लाना चाहिये उसके बाँधने से बीमारी चली जायगी । पिताजी ने यह काम निःसंकोच होकर क्रिया । यह बात दूसरी हैं कि लड़को अच्छा न हुआ । और भी बहुत से काम छोटे बड़े
उन्हें करना पड़त थे और वे करते थे। उनका स्वार्थ यह था कि __ मै. आराम से पलपुस जाऊं ।
- पिताजीने मेरे लिये जो त्याग किया, तप किया वह बहुत __ कम पिता कर पाते हैं। माताओं में अवश्य ही ऐसे नमूने मिल
सकते हैं वे भी बहुत नहीं। खैर, मेरे ऊपर पिताजी के उपकारों ...का ही बोझ नहीं है किन्तु बुआजी की सेवा, सहायतां और
मूलचन्दजी की सहिष्णुतारूप उदारता का बोझ भी कम नहीं हैं। जब इन बातों की याद आती है तो लजित हो जाता हूं कि समाज के लिये अच्छा बुरा कुछ भी किया हो पर पिताजी, बुआजी
और मूलचन्दजी का ऋण तो न चुका पाया । बुआजी तो तभी स्वर्गीया हो गई जब मेरे जीवन की कली खिलने भी न पाई थी।
६खिलाडी पढ़ने में कोई खास रुचि न थी सिर्फ पंडित कहलाने की महत्त्वाकांक्षा थी। शौक से अगर कोई चीज पढ़ता था तो वह था पद्मपुराण। स्कूली किताबें तो जी पर आती थीं। प्रायमरी हिन्दी स्कूल की पढ़ाई पूरी हो जाने पर. में अंग्रेजी स्कूल में बिठलाया गया। चारों तरह की वर्णमाला तो किसी तरह सीखली पर बाकी