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आत्म-कथा जो कुछ था वह भार हो गया । रटने में मैं कमजोर था । और अंग्रेजी में तो शब्दार्थ और स्पेलिंग की रटाई ही मुख्य थी । इसीलिये मैं जीवन भर अंग्रेजी न सीख सका । अध्यापक हो जाने पर भी कईबार प्रयत्न किया पर रटाई न कर सकने के कारण बहुत कम फल हुआ। और आज भी अंग्रेजी का ज्ञान नहीं के बराबर है। वाल्यवस्था में मैं सिर्फ भजन ही रट पाता था क्योंकि वह नगद पुण्य था-उसका फल तुरन्त मिलता था- समाज में तारीफ होती थी। वाकी रटने के कार्य में सदा असफल रहा।
रटाई की उस कमजोरी ने अंग्रेजी स्कूल की पढ़ाई से अरुचि करदी । पढ़ाई की अरुचि से मैं अधिक खिलाड़ी लड़ाकू वातूनी और साहसी हो गया । यद्यपि जब हिन्दी स्कूल में पढ़ता था तब भी खिलाड़ी था पर अब तो इस की मात्रा इतनी बढ़ गई कि सीमा का उल्लंघन हो गया। छुट्टीके दिन सबह से रात्रि के दस ग्यारह बजे तक खेलता ही रहता सिर्फ भोजन करने के लिये आता ।
अंग्रेजी स्कूल में मन न लगता था । मेरे. समान मन न लगासकनेवाले और भी लड़के थे उन सब का गुट्ट वन गया । हम लोग स्कूल के समय अपना अपना बस्ता लेकर निकलते और एक निश्चित जगह पर इकट्ठे होते फिर वहां से वस्ती से दूर खेतों में घूमते रहते । भूख लगती तो शाकभाजी के खेत में से मूली तोड़ लेते । पर चोरी करने के लिये जिस हिम्मत की जरूरत थी वह हिम्मत मुझमें नहीं थी। इसलिये दूसरे साथी जो चुराकर माल लाते उसी में से मुझे कुछ मिलता। इस प्रकार हम सब दिन पूरा