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राजविद्या।
[३]
भाषार्थ
हे सर्व शक्तिमति-स्वाधीन अधिक्य विचार शक्ति के चैपरीत शुद्धि के लिये प्रति समये सृष्टि के आरंभ मे राजविद्या नाम योग को मे प्रकाश करता हूं।
सोपि समये समये लुप्तः प्रकाशि. तश्च बोभूयते ॥
भाषार्थ
CNOR--
वह भी समय समये लुप्त प्रकाशित होता रहता है ।
अयमावयोः संवादः सृष्टे सुखशा. न्त्यस्थित्यै प्रबन्ध स्थिरतायैच प्रका. श्यते ॥
भावार्थ ये हम दोनु का संवाद सृष्टि का सुख शान्ति स्थिति और प्रबन्धों की स्थिरता के लिये प्रकाश
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