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(राजविद्या) [१०७ ] है इन दोनों की शुद्धि (शुद्धभावना और शुद्ध धारणा) ब प्रजावों को सुख शान्ति देने वाली
और इसे उलटी चाल प्रजाव. दुःख देने के कार्य है। बुढा तरुबेकार मंत्री राज्य की तमाम गुप्त बातों ( भेदों ) को जानता हो एलेको अलग न करना चाहिये पन्तू उनको अपना कीये हुवे रखना चाहि ये और सिकायत वाले कर्मचारियों को युक्तिसे जुदा करना चाहिये ऐसा को राज्य कार्य में न रखें।
श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ १७ दान पारीतोषिक वितरणम्॥राजा वा महान पुरुपोवा नाति मुक्तहरोनाति कृपणश्चभवेयुः सह प्रश्न्यत्वमा दार्य च प्रजारजन खलु नुप त्रभ्यः पारितो षिक वितरण न राज्ञो गौरबम् वद्धते व
औपनिकन पारितोषिकंमद्रादेः मान स्थ भम्याश्चभवति ॥ साधारण निधने भ्यस्तद्वितरणं महायकरणं यथावस्त्रं १
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