Book Title: Rajvidya
Author(s): Balbramhachari Yogiraj
Publisher: Balbramhachari Yogiraj

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Page 284
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www. kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (राजविद्या) [ १२१] जंगमों में (चराचरमें) सब जगह है इसी तरह राजा भी अपने गुप्त दूतों करके सर्व ब्यापी और सर्व जाण होकर सब प्रजावों और दूसरे राजावों का हाल जान्ता रहै। जैसे चंद्रमा अपणी शीत. लता और प्रकाश आदि गुणों करके लोका को सुख देता है इसी तरह राजा भी ॥ जैसे सूर्य थाड़ा थोड़ा जल हमेश अपणी किर्णो से वींच ता रहता है इसी तरह राजा भी प्रजावों से थोड़ा थोड़ा कर (लाग बाग) लेता रहै जिससे प्रजा दुःखी दरिद्री न होवे ॥ यमराज (धर्मराज) के समान राजा पापीयों को दण्डता है जिस्से वे पाप कर्म न करें || इंद्र के समान राजा न्याय करे जैसे मेघ (बादल) शुद्ध अशुद्ध पवित्र अ. पवित्र स्थान में समानही वर्षता है जिस्से (न्यायसे) प्रजा पुष्ठ ता पाती है और धन से परि पूर्ण रहती है ॥ ज्ञान के सार को देखने वाला राजा है ॥ ज्ञान विज्ञान सहित हैमंत्री होता ॥ आपस के संपद विपद के प्रबन्धों में अपनेही For Private And Personal Use Only

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