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राजविद्या।
शाण से ॥ ये विद्या क्षत्रियों की पृथिवी पर राज्य करने की शक्तिमयी (बल सहित) तीक्षणता (तेजी) है जैसे शस्त्र बहुत काल करके तेज धारा से हीन (भोटे) होजाते हैं इसी तरह क्षत्रिय भी बहुत काल करके शक्ति पुरुषार्थ और तेज से हनि होजाते हैं । शाण पर चढं हुवे शस्त्र फिर तेज होजाते हैं । राजविद्या क्षत्रियों की खुरशाण है । इस शास्त्र के अनुसार राजा राज्य करता हवा महान भागी, सुखी बड़ी ऊपर वाला और आशाष और मान के साथ और संतती (परवार) के साथ बहुत समय तक राज्य करता है और उस का राज्य अच्छा स्थिर दृढ और अचल होजात है और अखण्ड यश (कारती) और हमेश बहुत संतति (परिवार ) वाला और इस लोक और परलोक में सूर्य चन्द्र अर तारों की स्थिति तक स्वर्ग (सुख) भोग करता है ॥ पूर्ण श्रद्धा और मनकी तीन शक्ति (बल) के साथ करने से निस्सन्देह सद्धि होती है कुछ भी
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