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राजविद्या भाषार्थः
श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ २१
क्षत्रियों की सभा शान्ति का उपदेश और समाप्ति आशीष ॥ क्षत्रियों की प्रति संवत्सर में दोबार शुभ स्थान में शुद्धरितु में सभाहो जिन में परम पवित्र राज विद्योपदेश पर चिन्तवन हो और प्रबन्ध संबन्धी समाधान भी विचार कीये जावे ॥ वर्ष में एक वार पुण्य स्थान में राजावों क्षत्रियों की महासभा भी हो ॥ राजा विशेष कामों में साम. न्तों की और प्रजावों में से सभ्य जनों की सभा सम्मति लेवें । हरके जाति को सभा स्थापित करने और प्रचाईत कुरीति को मिटाने और अच्छी रीत को चलाने और जाति शुद्धार करनेका अधिकार है ।। महा सक्ति प्रश्न करती है ॥ अच्छी बुद्धेि को तीन वा तेज करना और शक्ति (बल) को बढ ना ये बातें क्षत्रिय कहां से पाते हैं । शिवने कहा-राजविद्या रूपी खुर
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