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राजविद्या
[१२७]
दुर्लभ नहीं है । यह हम दोनों का संवाद सृष्टी के सुख शान्ति स्थिति और प्रबन्धों की स्थिरता के लिये है । राजा विद्योपदेश से सत्य ज्ञान है सो सृष्टी के सुखशान्ति स्थिति और प्रबन्धों की स्थिरता है जिसे बल, बल से रक्षा पूर्व सुकृत से राजविद्या के उपदेश की प्राप्ति होतीहैं. जिस से शुद्ध विचार शक्ति वाही बुद्धि है तिस इष्ट जिस से जो चाहे सोही मिले । राज विद्योपदेश से शुद्धोच्चश्वर भाव से विचार शक्तिः जिससे इष्ट धर्म धर्म से न्याय जहाँ रक्षा न्याय है वहां राज स्थिर अचल और ध्रुव है
॥ समाप्तम् ।।
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