SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 267
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (राजविद्या) [१०७ ] है इन दोनों की शुद्धि (शुद्धभावना और शुद्ध धारणा) ब प्रजावों को सुख शान्ति देने वाली और इसे उलटी चाल प्रजाव. दुःख देने के कार्य है। बुढा तरुबेकार मंत्री राज्य की तमाम गुप्त बातों ( भेदों ) को जानता हो एलेको अलग न करना चाहिये पन्तू उनको अपना कीये हुवे रखना चाहि ये और सिकायत वाले कर्मचारियों को युक्तिसे जुदा करना चाहिये ऐसा को राज्य कार्य में न रखें। श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ १७ दान पारीतोषिक वितरणम्॥राजा वा महान पुरुपोवा नाति मुक्तहरोनाति कृपणश्चभवेयुः सह प्रश्न्यत्वमा दार्य च प्रजारजन खलु नुप त्रभ्यः पारितो षिक वितरण न राज्ञो गौरबम् वद्धते व औपनिकन पारितोषिकंमद्रादेः मान स्थ भम्याश्चभवति ॥ साधारण निधने भ्यस्तद्वितरणं महायकरणं यथावस्त्रं १ . LOO G - N . Late ज न T T For Private And Personal Use Only
SR No.020594
Book TitleRajvidya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBalbramhachari Yogiraj
PublisherBalbramhachari Yogiraj
Publication Year1930
Total Pages308
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy