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राजविद्या )
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नके सेवन में दुरव्यसनों में सदा निन्दनीय कार्यों में दुष्ट कर्मों में सदा खरच करते रहते है एलों की बुद्धि भी जगत के हानिकारक कामों में सदा भ्रमती है । ए सारी बातों राजा की अयोग्यता प्रगट करती है । राजा स्व धर्म कार्यों को छोड़कर स्वार्थ सुख में पड़कर वा नशे को सेवन करता है ar for अर्थक कार्य करता है नाचते गाने बजाने में स्त्रीयों में मद में दुर व्यशनों में प्रीति करता हुवा अन्या अन्य जातियों में संगम करता है राज से भ्रष्ट हो जाता है ऐसे सून्य सिंहासन को अन्या अन्य हरने के लिये तयार कमर कसे हुवे होते है कामसे लोभ लोभसे मोह और क्राधसे अहंकार इनका संभाव अधिकार हैं और संभाव से अधिकता अयोग्यता ह और जिनसे घोर नरक में पड़ते है याने भारी दुःखों में पड़ते है |
श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ २० राज्य शासन शक्ति प्रबन्धः सदाचार
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