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[ ११२] राजविद्या उनका कोई भी उलटा काम मालूम हो जाय जिनसे प्रजा दुःखी हो व उनका कोइ भी दुराचार नजर आजाय तो उनको अवश्य दण्ड देना चाहिये ।। एलान करने से वे खुद भी अन्याय करने लगजाय हरेक ऐसे कामों में राजा की देख भाल होनी चाहिये । कार्यकुशल पुरुष सब वृतान्त राजा को वाकिफ करते रहैं ।। अच्छी तरह से जांच की हुइ राज्य की आज्ञायें ही प्रबन्ध और नियम है और ये नियम अच्छी तरह से जाने हुव हो जिन से प्रजा के लोकों को सुख हो ॥ प्रजावों में सुख की स्थि. तिही राजाके नियमों ( कायदे कानून )का मतलब है।
श्रीमत्परम पावत्र सोम पाठ १९ राज्ञामयोग्यता धर्मविद्यांग वीरता हनिः कुष्टी क्रूरकर्माधर्मपालका प्रजारक्ष णेऽसमर्थाऽन्यायकारी वीरक्षत्रियेभ्यो राजावेद्या ज्ञातृभ्यः भूमिहता तेभ्यश्चा
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