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राजविद्या। [११६ ] हुवा राज्य तिनको नसभालने से नाशहोजातेहै विषाद ( दुःख ) निराश आलस्य परिवाद (विवाद-जिद्द ) विशन (बिसन ) स्त्रीयां और मदमें ( सराब-दारू) आतिजादाशिकार काशौक जूबा खेलना दिन को सोना-गाली आदि से बोलना -धनका दुषण याने देने योग्य को न देना और नदने योग्य को देना अपने आप को वशमें न रखना, कृत्न (उपकार को न मानना) विश्वास घात करना इन सबको दूरसे ही छाड़ देना ॥ राजका प्रवन्ध न हानस प्रजाकी महनत का धन दुष्ट बुरी तरह से काम में लाने वाले राज कर्मचारी वा उनके संबन्धी वा सदरे दृष्ट जन दीन गरीब प्रजाको हरतेहै और खजान तकभी द्रव्य कादुरुपयोग करत है गरीव प्रजा वलाप करता है शराप दताहे बद दुवा देताहै जिसक प्रभाव (असर) से राजा जलदी थोड़ी उमर होकरराज से भ्रष्ट होजाता है और व दुष्ट कर्मचारी आदि इस तरह पैदा कीये हुवे द्रव्य को अनाति से भागों में
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