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__ राजविद्या। [१०६ ] हो ॥ निश्चय करके सुपात्र को दान ( इनाम ) दना प्रजाका काम और राजाका गौरव बढाता है इनाम रूपेका और मान भूमि का है ॥ साधारण निर्धनों की सहायता करना कपड़ा कोई जरूरी चीज और पशू देकर के और कोई भी चीज शरी र के काम की हो देना चाहिये । और विशष कार्यों के लिये पृथ्विी का दान श्रेष्ठ है वीर क्षत्रि योंको भूमि देकर सम्मान कीया जाता है जिस्से राज्य का बल और प्रतिष्ठा अच्छि दृढ और स्थिर ता को पाता है । वीर क्षत्रियों के लिये यश ही धन है ।। कुपात्र को दान देने से दरीद्री हो जाता है। परंतू सुपात्रों को और पुण्य मागो में देने से चंद्र और तारों की स्थिति तक धन का धणी होता रहता है और वह देवता हो जाता है
और स्वग को भी खेल को तरह जात लेता है दृव्य और धन का द न देना ही अच्छा फल और बड़ा लाभ है ।। धन अति लोभ में पड़ने से नाश हामाता है ॥ सहासी ( पुरुषार्थि) लक्षों को
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