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[ २ ]
राजविद्या ।
भाषार्थ
यदि ये अधिक विचार शक्ति स्वार्थ सुख भोग ऐश्वर्य मोह आदि की अधिक्तावों में पड़ जाय तो जगत् मे महा कठिन दुःख होकर नाश को प्राप्त हो जाता है ॥
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हे महेशतवार्धगिनी अहम् ममो परी कृपां कृत्वा जगद्धितार्थ उचित प्रबन्धं प्रकाशये ॥
भाषाथ
हे महेश मे आपकी अर्ध अङ्गनी हूं मेरे पर कृपा करके जगतहित के लिये उचित प्रबन्ध प्रकाश कीजिये ||
हे सर्व शक्तिमति - स्वाधीन वि चाराधिक्य शक्तः वैपरीत्यशुध्यै प्रति समय सर्गे प्रारंभ राजविद्यानाम योग प्रकाशयाम्यहम् ॥
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