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राजविद्या ।
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( भाषार्थ )
शुद्ध भाव से प्रतिदिन शस्त्रअस्त्रों का अभ्यास करना वही शक्तिः याने बल है बल से रक्षा जिस से सुख है । उच्चभाव से सर्वोपरी विद्याका अभ्यास' जिस से सुमति (आछी बुद्धि ) जिस से न्याय और न्याय से शान्ति सदा ईश्वर याने मालकी भाव से पुरुषार्थ- शुद्धकया सब वृत्तान्त को जानन जगद्धितार्थ पारमार्थिक दान में उत्साह वही स्थिति है । शुद्ध उच्च ईश्वरभाव सरूप त्रिशूल तीन लोक जीतशक्ता है |
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