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[ १०२] राजविद्य। राजा का धन मान धर्म और उच्चपन्न ॥ राजा का धन और मान वीर सुभटों के लिये पण्डितों के लिये परोपकारियों के लिये और मुणियों के लिये इन चारों के सत्कार के लिये है फेर दीन जनों (गरीब आदमी) के लिय इसी तरह ज अपणा पोषण ( पालन ) करने से असमर्थ हैं उनके लिय प्रजाहित लिये और धर्म कार्यों के लिये है ।। सत्य पारमार्थिक और उपयोगी कामों के करने में लाभ न हो और जगह ॥ मान योग्य जनों का गज। यथाय यथोचित उत्तम मान दे ॥ यदि कोइ उच्चपद वाला ओल बा देन योग्य वा जादा बुरा बतलाने योग्य हो तो बड़ आदमी को एकान्त में कहना चाहिये ॥ जोकोई मध्य दर्जे का पुरुष भी मान योग्य हो उसको भी मान पात्रों में जान मान देना चाहिये । इस तरह मान न देने से इष्ट से बेमुख होता है जिा सका उपाय सब के सामने इष्ट देव को जेस पराध हो बल दे कृच्छ चढावे ॥ ध्वज लक्षण
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