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[१८]
राजविद्या। बुभुक्षिताः वा दरिद्रा भवेयुः तज्जातिया जनान् यथोचितेषु कार्येषु मा निध
ओत येन तेषां पालनं निवाहस्युः तेन पाप कार्याणि तेनानुतिष्टयः धर्मः ॥ क्षत्रिय शरीराय स्व राजविद्यायां श्रद्धा पुरुषार्थ ममैवाराधन सुपाशनं सर्वम् । यदिश्रयः परिबाज पण्डित हस्त ।।
भाषार्थ श्रीमत्परम पवित्र सोल पाठ १४ पुण्य धर्म है धर की आराधना उपाशना समस्त प्राणियों म भरी ही आत्मा का प्रकाश है ॥ सर्व शक्तिमयि योग माया से दोनु सर्व शक्तयों से जो जगत विस्तृत है सब जगह विश्वरूप में ही माया सब में देखी जाती है समस्त प्राणियों की जुदि जुदि स्थिति को मनुष्य की बुद्धि ही देखती है उससे ये सब चराचर विस्तृत है। विना दया कोमलता के राजा और धार्मिक (धर्मोप
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