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राजविद्या |
[ ५९ ]
बल बुद्धि से बलवान मर्यादा राज्य में जो अज्ञानता से अल्प (थोड़े ) बल के साथ मर्यादा को भंग करता है तो दुर्गति घेर लेती है जैसे समुद्र जल में डूबना और नाश होना ।
वादि प्रतिवाद्योभो पक्षयोशांतिः नस्तः वाधिकाधिक पुनर्विचारार्थाक्षिपा बोभूयन्ते न्यायाधीशस्यायोग्यता विद्य ते प्रत्येक राज्यकर्मचारी स्वे स्वे कायेंपुरता तेभ्यः राज्यहित्प्रजाहितभवतः प्रजा विलाप रहिता वर्धनम् । राजा प्रति शति प्रजानांपंचाक्षिण कर्मचारीभ्यः क्षमा कुर्यात्तत्पश्चात्कठिंडंडावश्यमेव ॥
भाषार्थ
वादि प्रतिवादि दोन पक्ष की शान्ति नहीं अधिकाधिक अपीले होती रहें तो न्याया घीशों की आयोग्यता समझी जाती है प्रत्येक
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