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[४४] राजविद्या। पार्थी वीर सुभटोस्मिल्लोके सर्वस्वं जयति स्वर्गमापि तथैवच ॥ तस्या संत. तिरपीहलोकेऽखण्डितया कीर्त्या सह सुखेन सुस्थिरया तिष्ठति ॥
पूर्व जन्म में इस मनुष्य शरीर से किये हवे पुरुषार्थ के ही फल से इस लोक मे सुख और लाभ पाता रहता है जिसको कोई और ताह नहीं करसक्ता है । पुरुषार्थी वीर सभट इस लोक मे सर्व पासक्ता है वा जीत सक्ता है और इसी तरह स्वर्ग को भी॥ और उसकी संतति भी इस लोक में अखण्ड कति ( जस ) और सुख के साथ स्थिर रहती है ॥
एतद्विद्याऽभावेन सुविचारहीना तथा तेजोसुमति पराक्रम श्रद्धा शक्ति पुरुषार्थहीना प्रदुष्यन्ति मम माया
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