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राजविद्या ।
[३५]
पक्ष में सर्वोपरी विद्या परिज्ञाता क्षत्रिय ब्राह्मण तथा वैश्या है | इन जड़ें और वृक्ष के आधे संबन्ध से आधे वृक्ष की स्थिति है और बिलकुल संबन्ध नहीं रहने से प्रतेक्ष नाश है ।। वृक्षों की जड़ों में भूमि जल शुद्ध रस देती है परन्त अन्याय से जड़ों में अभि देती है जिससे जड़ें जल जाती है और वृक्ष नाश होजाता है || अक्षय बट वृक्ष की जड़े वृक्ष की स्थिति है इसी तरह उनकी शाखों की जड़ों भी वृक्ष को मजबूत कर देती है इसी तरह अधिक शाखा अधिक मजबूत करती है ऐसे वृक्ष को वायू कोप विचाल नहीं सकता है इस तरह वीर सुभट क्षत्रियों के लिये भूमि का भाग देना (जमीन देना ) राज्य को सुस्थिर दृढ करता है उस राज्य को कोई
नहीं हर सकता ।
किसी राज्य की सब भूमि एक कंचन की कल्प लता को तरह पथरना की तरह अनन्त रल सहित विस्तार सहित बिछा हुवा है जिसको
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