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राजविद्या।
[७७] नाश हो जाता है और विना वीरता राज्य कीस्थि. ति नहींहै तीरा इसतरह वर्तनेसे उनका जाति
अभिमान हीन होजाताहै जिससे वेभी साधारण वर्ती को पकड़ लेते हैं जिस्ले उस राजाका बलनाश होजाताहै ॥ समस्त क्षत्रियों को योग्यता हर समय देखनी चाहिये ! उनकी योग्यता के अनु. सार पृथिवी पर मालकी देनी चाहिये । ये परम सार उपरी राज्य की स्थिरता को द्रढ करताहै ॥ नोकर सेना थोड़े काल के लिये उपयोगी है परंत बड़े प्रयोजन के लिये और बाहत काल के लिये मालकी भाव के साथ और मान इजतके साथ पृथिवी नाहै इसी तरह दाय विभाग (भाइ बंट और दुसरा हक का बंट) उनकी योग्यता नुसार देना चाहिय ॥
श्रीमत्परम पवित्र सोम पाठ ८ धर्मेण सहाय साधनोपायः सेव राज्ञः नव निधयः पृथिवो जलादिभिः परि.
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